उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जहाँ भगवान राम (Bhagwan Ram) ने अपने वनवास के दौरान माता सीता और लक्ष्मण के साथ रहे थे वहाँ पर एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक खोज की गई है यहां पर मिले पत्थर के औजार दुर्लभ चित्र प्राचीन सभ्यता और संसकृति पर प्रकाश डाल रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के चित्रकूट का भगवान राम से गहरा संबंध है। भगवान राम (Bhagwan Ram) ने अपने वनवास का समय पहाङों, जंगलो में घूमते हुए, वहां पर रहने वाले राक्षसों का नाश कर ऋषियों का संरक्षण करते हुये और उनके दर्शन करते हुये बिताया। भगवान राम के कारण चित्रकूट का एक अलग ही धार्मिक महत्व है। भगवान राम के समय की कई चीजें आज भी वहां हैं।
चित्रकूट के पहाङ, गुफाऐं और नदियां प्राचीन समय से आज तक एक अलग ही महत्व रखते हैं। हाँलांकि रखरखाव के अभाव में काफी प्राचीन चीजें नष्ट हो रहीं है फिर भी शैलचित्र और उस काल से जुङी अन्य चीजें यहां आज भी पाई जाती हैं।
चित्रकूट जिला में मनिकपुर के आस पास नये शैल चित्र लगातार मिल रहे हैं ये शैलचित्र सामूहिकता की भावना दर्शाते हैं और इसके साथ ही ये विंध्या घाटी में मिलने वाले शैलचित्रों से पूरा मिलते हैं। अभी हाल ही में चित्रकूट के सरहट में भी शैलचित्र मिले थे लेकिन पुरातत्व प्रेमी अनुज हनुमान और उसके साथियों ने इस स्थल के आस पास शैलचित्रों के कई बङे और नये पैनल खोजे हैं।
पुरातत्व विभाग और इतिहासकारों द्वारा निकाले गये निष्कर्ष के अनुसार ये पुरापाषाण काल की ओर ईशारा करते हैं। मनिकपुर की घाटी और इलाहाबाद की बेलन घाटी भौगोलिक दृष्टि से समान है ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पुरापाषाण काल चित्रकूट में भी फली फूली थी। हाँलांकि यह अभी अनुसंधान का विषय है, शैलचित्रों के अंकन और सामूहिकता यहाँ पुरापाषाण काल की संस्कृति के संकेत करते हैं।
पुरापाषाण काल की सभी शैलचित्र जो प्रमाणित हो चुके हैं उन सभी शैलचित्रो में लोग समूह में देखे जा सकते हैं। इन सभी शैलचित्रों में लोग शिकार, घरेलू पशुओं के प्रदर्शन और भोजन की तलाश में पैदल चलना आदि के द्वारा अपनी भावनाओं को व्यक्त करते थे। कई युद्व से संबंधित शैलचित्र भी चित्रकूट की दीवारों पर मिले हैं। जिस तरह से एक के बाद एक अलग अलग दृश्यों से जुङे शैलचित्र चित्रकूट में मिले हैं वह अपने आप में रूचिकर है।
भगवान राम (Bhagwan Ram) ने अपने वनवास के साढे ग्यारह साल (11.5 Years) माता सीता और लक्ष्मण के साथ चित्रकूट में बिताये थे यही कारण है कि इसके भी प्रमाण यहां कई स्थानों पर मिलते हैं। जिम्मेदार लोगों की अपनी विरासत के प्रति लापरवाही और उदासीनता आज उन पर भारी पङ रही है। ये अवशेष 84 किलोमीटर की परिक्रमा में बिखरे हुए हैं उन्हें संरक्षित किया जाना चाहिये।
Read in English – Organiser.org से साभार ।